मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

वे तो जुबान बदल लेते हैं कच्छे की तरह ?


आँधियों ने हमें उतना कभी नहीं डराया !
जितना राजनितिक दलों के कार्यकर्ताओं ने
इनमें जो दम्भ है वह उस तूफ़ान में नहीं !
इनकी जो चाल है वह उस आँधियों से तेज़ है ?
जो बहुत बड़ों बड़ों को उखाड़ देती हैं !

पर ये उखड़ने का नाम ही नहीं ले रहे हैं ?
कहीं किसी दल के रूप में तो फिर कहीं !
जब चाहते हैं बदल लेते हैं दल बनियान की तरह  !
हम तो बदल नहीं पाते अपनी बात ?
वे तो जुबान बदल लेते हैं कच्छे की तरह ?

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डॉ.लाल रत्नाकर




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