बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

ये तो अपना अपमान बचाने आये हैं !


ये बदल जाते हैं
कच्चे रंग की तरह
बदरंग हो जाते हैं
सड़े फल की तरह
इनसे सावधान रहना
कहीं टपक न पडे
चिड़ियों के बीट की तरह
असमय !

यह चुनाव का समय है !
या चुन हमें की हुंकार का समय है !
सावधान होकर चुनना !
ये हमारे लिए नहीं और न अपने लिए आये हैं !
इनका वजूद बचा  है !
इसीलिए किसी का वजूद बचाने आये हैं !
देखना है कौवे की नजर !
जो आपके श्वेत लिबास और मन को
पचाने या मिटाने आये हैं !

हमें तो छोड़ दो !
हम तो उन्हें चुपचाप !
बताने आये थे !
अब उन्हें चुनना जो खुद को बचा सकें !
ये भरम छोड़ दो कि ये तुम्हे बचाने आये है !
यही हैं जो कल तक सब लूट रहे थे !
आज अपनी लूट ये छुपाने आये हैं !
चुनाव में अपमान का मतलब नहीं होता !
अगर सम्मान होता तो ये बचाते भी !
ये तो अपना अपमान बचाने आये हैं !
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डॉ.लाल रत्नाकर



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