रविवार, 2 अप्रैल 2017

यह मशीने हमें आने नहीं देंगी ?

जब मशीने तय करने लगीं लोकतंत्र !
इसका आकलन अब कौन करेगा ?
वही जिसने लोकतंत्र में हार के डर से ?
तब लोक यहाँ से किस तरह गायब है !
क्योंकि जब शातिरों ने सोचा होगा उपाय ?
बदल डाला विश्वास करने लायक तंत्र ?
वोट का पत्र यानी मतपत्र क्योंकि वह !
बदल नहीं पाता निशान या अपना स्वाभाव !
हाँ इसे जबरिया डाला जा सकता है !
लूटा जा सकता है पर गलत नहीं होता ?
इसपर लगा दिया गया निशान ?
उसी मतपत्र ने बदल डाला था सत्ता का तंत्र
और जागरूक हो गया था जनतंत्र !
पर आधुनिकता और सुविधा के नाम पर !
बदल डाला जनतंत्र का चरित्र ?
हमें और हमारे विश्वास को बाध्य कर दिया है
सोचने के लिए नया ढंग !
जो विश्वसनीय हो !
नहीं तो यह मशीने हमें आने नहीं देंगी ?
क्योंकि यह करने लगी हैं षडयंत्र ?





कोई टिप्पणी नहीं: