रविवार, 29 अप्रैल 2018

पहचान के अंधकार में

हिसक हो गयी सत्ता अहिंसा के हथियार से
यह कैसी राजनीति है जिसमें अत्याचार है। 

यह कैसा सत्ता का व्यापार के विचार से
हमारी नियति पर अविश्वास करने वाले !

लूट और संविधान का न्याय से अन्याय का !
क्या मतलब होता है राजनीतक विचार में !

बहुरूपिये आ गए हैं पहचान के अंधकार में
जनता को ठग लिया है वाणी के अत्याचार से !

मारकाट कर रहे हैं इशारे पर छुटभैये लूटेरे
सत्ता और मशीनरी का मुह बंद कर दिया है !

घूम रहा दुनिया में कार बार छोड़कर  !
बेच रहा देश को व्यापारियों को अपने !

सपने दिखा रहा है रोज़ रोज़ उन सबको
जिनको मरवा रहा है तरह तरह से चुनके !

-डॉ.लाल रत्नाकर 







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