रविवार, 8 अप्रैल 2018

धूम धाम से ..........


जब तुम आये थे धूम धाम से !
हमने भी सोचा था कुछ बात तो होगी !
और तुम धूम धडामे से कुछ कर रहे थे !
ढोल नगाड़े सब फीके लग रहे थे ?
जब तुम गरज रहे थे, हुंकार भर रहे थे !
और धीरे धीरे यह समझ में आने लगा है  !
गांव की नौटंकी में जैसे राजा रात में ?
हुंकार रहा था और सुबह सो गया था !
तुम वैसे ही लगने लगे हो मसखरा !
रूप रंग ढंग सब वैसे ही लगने लगा है !
जैसे कोई रात की नौटंकी में !
चिल्ला चिल्ला के कह रहा है ?
और पड़ोस के घर से ताला तोड़कर !
सारा माल चोर और उसका गिरोह !
उसी समय उड़ाकर ले गया है !
और दिन का सन्नाटा रात की नौटंकी !
सब एक साथ सुनाई पड़ रही है !
की तुम क्यों आये थे धूम धाम से !


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