चित्र ;कुमार संतोष |
इतने झूठे प्रचार की जरुरत क्या थी
जब जग को उनकी सच्चाई पता ही है
तो हमें उनके इरादे भी नेक नहीं लगते
प्रचार से सच को छुपाया जा रहा है।
क्या सदियों से इसी तरह के असत्य से
सम्पूर्ण समाज को गुमराह नहीं किया है
मनुवाद ! का रह रह कर ज़िक्र नहीं किया है
क्या है यह ! कभी इसपर विचार किया है।
संविधान से उन्हें इतनी चिढ़ क्यों है ?
आख़िर देश की संम्प्रभुता की ताक़त तो वही है
वह कौन हैं जिन्हें यह संविधान ! रास नही आ रहा है ?
उन्हें पहचानों और उठो वक़्त यही कह रहा है !
डा.लाल रत्नाकर
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