बुधवार, 22 अगस्त 2018

तुम्हारे हक़ के लिये ?


चित्र : साक्षी कसाना 

हमारी शक्ति को क्या हो गया है !
क्या सचमुच हम शक्तिहीन होते जा रहे हैं !
कुछ तो है जिसे हम देख नहीं पा रहे हैं !
हमारे भाई बन्धु सब हमसे अलग होते जा रहे हैं !

विचारणीय है हमने संघर्ष करते हुये !
कभी नहीं सोचा कि हम क्यों लड़ रहे है !
किसके किसके लिये ?
पर उन्हें उनके दुश्मनों ने समझा दिया है !
कि वह तुम्हारे लिये नहीं लड़ रहे है !
और वह उसी की बात मानकर खड़ा हो गया है !
अपने हक़ के ख़िलाफ़ उसी के साथ !
जिसने आज से नहीं सदियों से मारा है उसका हक़ !

फिर भी हम लड़ रहे हैं !
अपने लिये नहीं उन सबके लिये जिनको जिनको उसने !
ठगकर मिला रखा है अपने साथ !
मेरे दोस्त मेरे बन्धु मेरे हमसफ़र !
तुम काश समझ पाते उसकी चाल !
फिर भी हम लड़ेंगे अन्त के अनन्त काल तक !
तुम्हारे हक़ के लिये ?

डा.लाल रत्नाकर


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