चित्र : हर्षिता तिवारी |
मेरे दोस्त ! दुश्मन की तरह आचरण कर लो ?
वक़्त इंतज़ार कर रहा है तुम्हारा वक़्त जाने का !
लगा लो आग नफ़रत की अफ़वाह के ज़रिये !
ज़माना जानता है कि क़ातिल कौन है उसका !
बहाने कितने बना लो अब तुम्हें पहचानता है वह !
तुम्हारी हर चालाकियाँ समझ आने लगी हैं अब !
वतन के दुश्मन तुम हो बताते और को हो तुम !
तुम्हारी आदतें है फ़र्ज़ी चलाते हो अपनी मर्ज़ी तू !
वतन का क़ानून, संविधान सिसकियॉ भर रहा हो जब !
अब और मौक़ा नहीं तुमको तुम्हारा अन्त होना है !
तुम्हारा ज़हर ही तुम्हारा जलजला है! किसे कहते हो क़ातिल ?
बहुत चूसा है हमारा रक्त, भक्तों के भरोसे तुम !
चलो भागो ! तुम्हे हटाने को ही जनता आ रही है अब !
-डॉ.लाल रत्नाकर
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