चित्र ; डॉ.लाल रत्नाकर |
तुम्हारी नफ़रत इस कदर हावी है !
क्या मेरी खुशियां तुमसे बर्दास्त नहीं होतीं।
तुम्हारा अहंकार तुम्हें क्यों नहीं जलाता ?
क्या हमारा अधिकार तुम्हे गिरवीं है !
क्यों सत्य को नहीं मान रहे हो तुम ?
मेरे साहस को बार बार चुनौती दे रहे हो ?
शायद तुम भूल रहे हो संविधान को !
हमें यह हक़ हमारा संविधान देता है !
क्योंकि बाबा साहब ने यह सपना देखा था।
हम सबके भावी भविष्य के लिये !
तभी तो तुम छल प्रपंच करते रहे हो !
बाबा साहब और संविधान के ख़िलाफ़ सदा !
लेकिन तुम्हे यह नहीं पता कि संविधान ही तुम्हे !
इस देश में रहने का हक़ देता है !
डॉ.लाल रत्नाकर
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