रविवार, 25 नवंबर 2018

मेरे बाबू जी !

जिस पर सबसे ज़्यादा भरोसा था !
शायद आपको उसे पूरा कर रहा हूँ !

आपको बहुत याद करते हैं घर आकर काश !
आज आप होते ! तो मैं आपके क्षत्रछाया में !
यह एहसास कर रहा होता कि मेरे ऊपर भी !
हाथ है विश्वास का और हम बँधे है उससे ही !

वही तो थे जो बॉधे हुये थे समाज को हाथों से !
हमारे बाबू जी ही थे जो सबको गले लगाते थे !
जिन्होंने उन्हें देखा जाना था उनमें सबसे ज़्यादा !
मेरी मां है जिसे सबने किनारे कर दिया है आज !

काश मेरे बाबू जी होते आज तो वह कुछ करते !
क्योंकि उनके मन में सबके लिये जो सम भाव था !
थे वह निश्छल विकार रहित वट वृक्ष की तरह !
उसे ही काट डाला जिन्हें सर्वाधिक छाया दी थी !

जो जानते थे परिवार और उसे संभालना निर्विकार !
जिसे तहस नहस कर डाला उन्होंने जिन्हें सींचा था !
अपने हाडतोड श्रम ख़ून और पसीने से दिन और रात !
उनके विश्वास को ही तो तहस नहस कर डाला ?

जिस जिस पर उन्हें भरपूर भरोसा था ?
जिसपर सबसे ज़्यादा करते थे विश्वास !

- डॉ.लाल रत्नाकर 


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