दुर्भाग्य ही है इस समय समय का !
चारों तरफ़ बड़ा जमावड़ा हो गया है !
मवालियों और बवालियों का ?
सरकारी ग़ैर सरकारी संस्थानों पर !
क़ब्ज़ा जमा लिया है मवालियों ने ?
वक़्त का दरअसल खेल है !
समीकरण तो बन ही जाते हैं गणित में !
जनता को ज़माने से ठगने के लिये जग में !
यही तो मौक़े की तलाश है ?
स्वप्न दिखा रहा है घूमघूम कर मवाली !
बहला रहा है चिढ़ा रहा इतिहास को ?
कैसा है यह नक़ली खिलाड़ी ?
- डा. लाल रत्नाकर
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