गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

चालाक !


जिनकी चालाकियों ने एहसास को समेट दिया !
मानवता के मूल्यों को वह जहर में लपेट दिया !
ऊँची ऊँची बातों ने नीची हरकतों में लपेट दिया !
समूह को बाटकर सबकुछ समेटकर लपेट दिया !

हरकतें उनकी उन्हें मुबारक जो हमारे काम की न रही !
लबे अंदाज उनका बहुत शातिराना है !


-डॉ.लाल रत्नाकर 


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