शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

कैसा विकास !


जो कह रहे हैं विकास हो रहा है।
जरा उनसे पूछो विकास की परिभाषा क्या है?
वह  परिभाषा के नाम पर टुकुर-टुकुर निहार रहा है।
ऐसा विकास जिसमें सब कुछ ध्वस्त हो गया है।
मगर ?
उनसे विकास का क्रम पूछो !
तो कह रहा है कुछ तो हो रहा है।
उसके कुछ के पीछे !
उसकी जात उसका धर्म !
और उसकी बेवकूफी की !
बहुत अच्छी माप हो रही है।
यह कैसा विकास है ?
जो एकतरफा हो रहा है।
पूंजीपति सरकार को नियंत्रित कर रहा है ?
और सरकार गरीबों को मार रही है।
वही सरकार पूजीपतियों को देश की सारी संपदा सौंप रही है।
जनता की जेब काटने के लिए ?
नोट बंद कर रही है।
और नोटबंदी करके !
नोट की हेराफेरी कर रही है।
कहती है हम बनिए हैं ?
बनियों की सरकार है !
तो बनियागिरी करेगी ही।
बनिया !
सरकार चलाने के लिए नहीं होता?
बनिए का काम व्यापार होता है।
यह व्यापार ही तो कर रहे हैं?
सरकार तो कोई और चला रहा है।
कोई और चला रहा है।
यह तो केवल अक्कड़ बक्कड़ ।
बता रहा है।
लाल बुझक्कड़ जैसा!
माहौल बना रहा है!
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डा.लाल रत्नाकर

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