मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

मनुस्मृति के प्रकोप को संविधान से धोकर !

चित्र : डॉ.लाल रत्नाकर  (एच यल दुसाध की पुस्तक)
नए वर्ष के एक एक दिन कम होते गए !
हम फिर इंतज़ार कर रहे हैं नव वर्ष का !

पिछली बार हम सब ने जो योजनाएं बनाई थीं !
कितनी पूरी हुई इसका लेखा जोखा कर रहे है !

हम नए की उम्मीद में पुराने होते गए प्रतिदिन !
इंतज़ार, व्यापार, लाचार और न जाने क्या क्या ?

विकास अब तो तू झूठ का पुलिंदा हो गया है !
क्योंकि संविधान पुराना हो गया है और "मनुस्मृति"?

"मनुस्मृति" नयी नवेली दुल्हन की तरह ड्योढ़ी पर !
कहारों ने नहीं पाखंडियों ने लाकर रख दिया है हमारे  !

वह नंगा नाच रही है "जलेबी" फिल्म की नायिका की तरह ! 
और हीरो डरे हुए हैं इस उम्मीद में की कहीं उनको भी !

अब फिर नया वर्ष आ रहा है संविधान कराह रहा है !
आरोप गढे जा रहे हैं और चौकीदार मृदंग बजा रहा है !

धीरे धीरे समय जा रहा है संविधान वापस आ रहा है !
अब नए वर्ष की ड्योढ़ी पर सजग रहने की जरुरत है !

जरुरत है मनुस्मृति के प्रकोप को संविधान से धोकर !
गोबर से लीपकर वापस संवैधानिक नियम को लाना है !

एक जुटता से पाखण्ड मिटाना है यह संकल्प दोहराना है !
संविधान बचाना है ! संविधान बचाना है !संविधान बचाना है !

सांस्कृतिक साम्राजयवाद मिटाना है इससे पीछा छुड़ाना है 
नया सबेरा लाना है, नया सबेरा लाना है, संविधान बचाना है !

-डॉ.लाल रत्नाकर 


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