चित्र : रत्नाकर |
बात ईवेंण्टस की नहीं है ईवेंण्ट्स मैनेजमेंण्ट की है !
आपकी क्षमता, हैसियत की लोकप्रियता की नहीं !
यह भूल भूल नहीं होती भूख होती है भीतर के झूठ की !
जिसे पूरा करता है इवेंट्स मैनेजमेंण्ट कहीं भी कभी भी !
हमारी जनसभाएँ शादी ब्याह स्वत: होती है अतिथियों की !
श्रोताओं की नाते रिस्तेदारों और बारातियों के समूह की !
मगर इवेंट्स मैनेजमेंण्ट सभायें शादी तो कभी भी कहीं भी !
आयोजित करा देते हैं जिसमें वो लोग नहीं होते जिन्हें हम ?
अपना कहते हैं ?
ज़रूरत तो है यह सब समझने की लाल बुझक्कड की तरह !
सपने वादे इरादे विश्वास सब हमें क्यों और कौन दे रहा है !
क्यों क्योंकि उसने जब सब कुछ हासिल ही किया है झूठ से !
झूठ और पाखण्ड का ही तो साम्राज्य चला रहा है हथियाकर !
डॉ.लाल रत्नाकर
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