बुधवार, 26 दिसंबर 2018

नफ़रत भरते फिरते हो !



                                                           

आवाज़ दो हम एक हैं
हम एक हैं हम एक है ।
हम आज़ाद है ।
हम आबाद हैं ।
बर्बादियों के चक्रव्यूह में
तुम हमको डाल दिये हो ?
मालिक हो या मवाली हो !
तुम कितने खाली ख़ाली हो ।
सर्वज्ञ बने फिरते हो !
नफ़रत भरते फिरते हो !
तुम शक्ति नहीं ?
शैतानी के पोषक हो !
शोषक हो ?
कहते हो तुम पोषक हो !
संशाधन का घालमेल कर !
संविधान का रेल पेल कर !
जनता के कैसे सेवक हो ?
जनता भोली भाली है !
पर यह सब चाल जानती है !
रग रग पहचानती है ?
झूठ फ़रेब मक्कारी की !
यह पब्लिक है !
सब जानती है !
डा. लाल रत्नाकर

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