बुधवार, 26 दिसंबर 2018

संघर्ष


हम मेहनत कर रहे थे।
वह मेरी मेहनत का मुनाफा ले रहा था।
हम उसके कर्जदार हो रहे थे।
वो मेरे श्रम पर मालदार हो रहा था।
हम कंगाल हो रहे थे।
वह सत्ता और शक्ति संभाल रहा था।
वे कर्ज से आत्महत्या कर रहे थे।
वह जज की कुर्सी पर बैठकर !
लंबे समय मुकदमे में उलझा रखा था ।
अधर्मी उसे धार्मिक बना रहा था।
जो अधर्म में डूबा तांडव मचा रहा था।
हम मेहनत कर रहे थे।
वह मेरी मेहनत का मुनाफा ले रहा था।
हम उसके कर्जदार हो रहे थे।
हम उसके बुत बना रहे थे।
और हमें वह बुत बना रहा था।
फर्क इतना था हम इंसान थे।
वह हमें बेईमान बना रहा था।
जबकि बेईमानी करके ?
वह साम्राज्य खड़ा किया था।
डॉ . लाल रत्नाकर

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