तुम्हारी छाया से भी नफरत है
तुम्हारी काया से भी नफरत है
वह छुपे हुए लोग हैं
जिन्हें तुम अपना समझ बैठे हो
सदियों से पराए हैं।
तुम्हें पता नहीं उनको तुम्हारा
खून प्यारा है तू नहीं प्यारा है।
तुम इतने बड़े हिंदू हो
तुम्हें कुत्ते की तरह पाला है।
क्योंकि हिंदुत्वा पर शिर नवाए हो।
कीचड़ और कमल का ताल्लुक।
क्या तुम्हारी समझ में आता है !
अगर नहीं तो काशी चले जाओ !
और पहचानों उन्हें जो देशभर से !
-डॉ० लाल रत्नाकर
तुम्हारी काया से भी नफरत है
वह छुपे हुए लोग हैं
जिन्हें तुम अपना समझ बैठे हो
सदियों से पराए हैं।
तुम्हें पता नहीं उनको तुम्हारा
खून प्यारा है तू नहीं प्यारा है।
तुम इतने बड़े हिंदू हो
तुम्हें कुत्ते की तरह पाला है।
क्योंकि हिंदुत्वा पर शिर नवाए हो।
कीचड़ और कमल का ताल्लुक।
क्या तुम्हारी समझ में आता है !
अगर नहीं तो काशी चले जाओ !
और पहचानों उन्हें जो देशभर से !
-डॉ० लाल रत्नाकर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें