गुरुवार, 6 जून 2019

पाखण्ड


आइए हम फिर करें।
शोध और मनन फिर से।
वक्त तो गुजरेगा,
अपने गति और शक्ति से।
अज्ञानता के भाव में
या व्यक्ति के,
भक्ति के स्वभाव में
साहस नहीं
दुस्साहस सही
कर रहे हैं वे सदा
अपमान अपने ज्ञान का।
जो नहीं है तथ्य ऐसा
जिसका संदर्भ हो
विज्ञान से।
पूजते पाखंड को
जो सच को मिथ्या मान के।
अभिशाप उनको मिल गया है
पाप उनको मिल गया है
शॉप उनको मिल गया है।
देश उनको मिल गया है।
वेश  उनको मिल गया है
संत के परिधान का।
राष्ट्र के स्वाभिमान का।
और धर्म के अभिमान का।
जन जन के अज्ञान का।
मत उनको मिल गया है।

*डॉ लाल रत्नाकर


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