शुक्रवार, 14 जून 2019

जैसा मैं सोचता हूं।


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मित्रों मैं सच कह रहा हूं!
मुझे बिल्कुल यह भरोसा नहीं है !
मैं जो कह रहा हूं !
उसे वैसे ही लिया जाएगा!
मैं तो केवल इसलिए कह रहा हूं!
मैं जो हूं वैसा ही सोचता हूं!
और मेरी पूरी कोशिश होगी !
जब मौका मिला तो मैं।
उसी तरह का करूंगा।
जैसा मैं सोचता हूं।
संविधान की इजाज़त?
तो चाहिए ही।
उनको जरूरत ही कहां ?
जो कुछ भी करने को।
तत्पर हैं संविधान के विपरीत।
सत्ता पाकर।
-डॉ लाल रत्नाकर

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