चलो साथी अब लौट चलें !
उम्मीद छोड़कर परिवर्तन की।
वह नशे में डूब गया है पाखंड के।
परिवर्तन के पराकाष्ठा की उम्मीद से।
सामान्य परिवर्तन की भी जरूरत है।
जिसे वह महसूस भी नहीं कर रहा है।
कैसा हो यह परिवर्तन कौन करे विचार।
गिरोह देश द्रोहियों का देशभक्त हो गया है।
भक्ति की बात करना ।
और संविधान को न मानना।
यह कैसी देशभक्ति है ।
पाखंड की यही शक्ति है।
चलो साथी अब लौट चलें !
उम्मीद छोड़कर परिवर्तन की।
गिरोह देश द्रोहियों का देशभक्त हो गया है।
डॉ लाल रत्नाकर
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