
बर्बरता चरम पर है।
शासक माखौल के मूड में है।
शासक माखौल के मूड में है।
जनता उग्र है अधिकारी सुस्त हैं।
अवाम के विविध बटे हुए खंड हैं।
सुरक्षा करने वाले भी असुरक्षित है।
मुल्क का यह हाल है जनता बेहाल है।
अब तो केवल सत्ता का सवाल है।
देश में बवाल है सुरक्षा बेहाल है।
भक्त मालामाल है श्रमिक कंगाल है।
बर्बरता चरम पर है।
शासक माखौल के मूड में है।
संविधान पर धूल है।
मनुस्मृति फूल पर है।
आजादी की लड़ाई का।
क्रूरतम काल है ।
जनता बेहाल है ।
व्यापारी मालामाल है।
अवाम के विविध बटे हुए खंड हैं।
सुरक्षा करने वाले भी असुरक्षित है।
मुल्क का यह हाल है जनता बेहाल है।
अब तो केवल सत्ता का सवाल है।
देश में बवाल है सुरक्षा बेहाल है।
भक्त मालामाल है श्रमिक कंगाल है।
बर्बरता चरम पर है।
शासक माखौल के मूड में है।
संविधान पर धूल है।
मनुस्मृति फूल पर है।
आजादी की लड़ाई का।
क्रूरतम काल है ।
जनता बेहाल है ।
व्यापारी मालामाल है।
डॉ लाल रत्नाकर
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