हजारों साल से पाखंड को पूजते हैं
यह बात किसको पता नहीं है।
यह जानबूझकर के धर्म भीरू बने हुए हैं।
संघर्ष से नहीं आशीर्वाद से इतने बड़े हुए हैं।
लोकतंत्र ने इन्हें मौका दिया।
और इन्होंने लोकतंत्र में पाखंड भर दिया।
राजनीति हमेशा धर्म से अलग होती है।
धर्म धर्म होता है और राजनीत राजनीत होती है।
दुनिया के इतिहास में जब भी राजनीति।
धर्म से नियंत्रित होती है तो।
धर्म का आधिपत्य सामंती हो जाता है।
क्योंकि राजा जानता है कि धर्म नशा है।
और अवाम नशे में है जो चाहो शो करो।
किस धर्म के नशे से निकालना।
एक नशेड़ी को नशे से मुक्त करना है।
बहुजन समाज नशेड़ी से भी ज्यादा।
धार्मिक नशे में डूबा हुआ है।
उसे सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का।
अर्थ ही नहीं पता है।
बहुजन राजनीति के मूर्ख राजनीतिग्य।
आकंठ पाखंड में डूबे हुए हैं।
और उनका गुरु कोई पाखंडी बना हुआ है।
वह यह सुनने को तैयार नहीं है।
कि जब तक यह धर्म रहेगा।
वह गुलाम बने रहेंगे।
अभी तो हम धार्मिक गुलामी झेल रहे हैं।
जब हम उठ खड़े होंगे इसके खिलाफ।
तो हमें आधार्मिक बताकर ।
करार कर दिया जाएगा यह देशद्रोही हैं।
धार्मिक होना देश प्रेमी होना नहीं है।
क्योंकि हमारे संविधान में
किसी भी धर्म की गुलामी की व्यवस्था।
उल्लिखित नहीं है।
डॉ लाल रत्नाकर
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