मंगलवार, 2 जुलाई 2019

चैन की सॉस

चैन की सांस भी लें
तो कहां लें ।
हवा में जहर घुल गया है
खिड़कियां खोलें तो कैसे
पूरा शहर गैस का चैंबर
बन गया है।

जिनको समझा था शरीफ
वही तो शातिर निकला।
धुंए से दूर गया तो समझा
मिलेगा सुकून।
यहां तो गंध इतनी फैली है
सफल नहीं है स्वच्छता मिशन
और तो और कूड़ा बहुत
बिखेरा है।
सिर और सड़क के उपर।

कौन कहता है कि कला कला है
उसे कहीं भी कर डालो,
चौराहों पर नृत्य और दीवारें
रंग डालो।
शोक में रोने को शोक गीत कहो।
मौत को वोट में बदल डालो।
विकास के नाम पर अपना
फार्मूला दे दो।
संघी साथी को खुला छोड़
चमन हमारा रौंद डालो।

- डॉ.लाल रत्नाकर

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