संगसाथ चलें सब साथ चलें।
खुशहाल चलें कंगाल चलें।
धरती को नरक करने वाले भी चलें ।
चांद को सर्ग कहने वाले भी चलें।
चले वो भी चले हम भी हमारे साथ चलें।
गफलत में ही सही पर वे भी चले।
करने को चांद अपनी और हमारी मुट्ठी में ।
जिससे कह सकें हम मालिक है चाद हमारा है।
चलो जल्दी सब चांद पे चलें ।
बचपन में हम सब चांद पर रात में ही जाते थे।
जब आसमान में ।
तारों के बीच में चांद निकल आता था।
तो घरों के आंगन में माएं लोरियों में।
चांद को उतार लाती थी दूध के कटोरे में।
और इस चक्कर में गटर गटर पी जाते थे।
दूध के कटोरे को नटखट भोले भाले अच्छे बच्चे।
पर चंदा मामा तू उतरने की कौन कहे।
उतरने ही नहीं दिया मेरे देश के भेजे हुए।
हमारे प्रधानमंत्री के निगरानी में चंद्रयान।
चंदा मामा क्यों नाराज हो।
हमारे लोकलुभावन प्रधान सेवक से।
हमारे वैज्ञानिकों से।
हमारे वाचाल मीडिया कर्मियों से।
भारत की अवाम आपको बहुत प्यार करती है।
आप फिर उतर आना हमारे बच्चों के दूध के कटोरे में।
अजोरी रात में तारों की छांव में।
डॉ लाल रत्नाकर
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