कब से तुम क़ानून पर चलने लगे ?
क्या तुम्हारा निकम्मापन किसी से छुपा है।
यदि नहीं तो उसको क्यों बीच में लाते हो।
क़ानून जिसकी तुम धज्जियाँ उड़ाते हो।
चलो यह एहसास हमें होने लगा है।
कि तुम्हारी चाल में जग आ गया है।
ग़रीब को अमीर से नफ़रत का मन्त्र ।
फिर से तेरे काम तो आ ही गया है।
जाति नफ़रत यन्त्र तो तू पा गया है।
जातियों को जातियों का गुणा भाग ।
कितना सही कितना ग़लत समझा दिया है ।
जब संविधान तुमको पचता नहीं है।
उसकी तू धज्जियाँ क्यों उड़ा रहा है ।
अब सम्भल जा, भाग जा इस देश से।
चाल तेरी अब बताती है सब तेरी कथा ।
देश सहने से रहा अब तेरी अन्तर्व्यथा ।
बर्वादियों का जो तेरा पुराना मिज़ाज है।
अन्धभक्ति में डूबा तेरा भक्त समाज है।
जो लूट करके देश के स्वाभिमान को।
यूँ कब तलक चलायेगा नकली भेष में।
डॉ लाल रत्नाकर
ाा।
क्या तुम्हारा निकम्मापन किसी से छुपा है।
यदि नहीं तो उसको क्यों बीच में लाते हो।
क़ानून जिसकी तुम धज्जियाँ उड़ाते हो।
चलो यह एहसास हमें होने लगा है।
कि तुम्हारी चाल में जग आ गया है।
ग़रीब को अमीर से नफ़रत का मन्त्र ।
फिर से तेरे काम तो आ ही गया है।
जाति नफ़रत यन्त्र तो तू पा गया है।
जातियों को जातियों का गुणा भाग ।
कितना सही कितना ग़लत समझा दिया है ।
जब संविधान तुमको पचता नहीं है।
उसकी तू धज्जियाँ क्यों उड़ा रहा है ।
अब सम्भल जा, भाग जा इस देश से।
चाल तेरी अब बताती है सब तेरी कथा ।
देश सहने से रहा अब तेरी अन्तर्व्यथा ।
बर्वादियों का जो तेरा पुराना मिज़ाज है।
अन्धभक्ति में डूबा तेरा भक्त समाज है।
जो लूट करके देश के स्वाभिमान को।
यूँ कब तलक चलायेगा नकली भेष में।
डॉ लाल रत्नाकर
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