
नहीं सब कुछ बदल रहा है क्या ?
संभवत उनके लिए नहीं बदल रहा है।
जो स्वयं को बदलते हुए तो देखना चाहते हैं।
लेकिन दूसरा बदल रहा है।
यह उन्हें बर्दाश्त नहीं है।
वह बहुत फख्र से कहते हैं कि वह फलां हैं।
क्योंकि उनके अंदर नफरत का जहर भरा हुआ है।
नफरत का अर्थ उन्हें जिस तरह से समझाया गया है।
वह समझते हैं कि नफरत बहुत अच्छी चीज है।
उन्हें यह नहीं समझाया गया कि तुम्हें।
यदि कोई इसी तरह नफरत करेगा ?
तो तुम कहां जाओगे क्योंकि तुम स्थाई नहीं हो।
तुम्हारा इतिहास किसी से छुपा नहीं है।
तुम भी उतने ही विदेशी हो।
जितना किसी को विदेशी कह रहे हो।
तुम भी तो कहीं से आए हो इस पर बहस होनी बाकी है।
यही डर तुम्हारे पीछे बहुत जोर से।
तुम्हें झकझोर रहा है क्योंकि तुम भीतर से डरे हुए हो।
हां संविधान से और उसकी धाराओं से।
तभी तो तुम उसे नहीं मान रहे हो।
हमारा संविधान हमारा धर्म है हमारी आस्था है।
हम उसी संविधान के सहारे आजाद हैं।
तुम गुलाम बनाने का प्रपंच रच रहे हो।
जी जो लोग आजाद हुए थे।
क्या उन्हें ज्ञान नहीं था।
तब संविधान नहीं था।
संविधान उन्होंने ही बनाया है।
और उसी संविधान के चलते।
आज तुम वहां हो जहां तुम्हें मनुस्मृति।
कभी नहीं आने देगा।
जी सब कुछ नहीं बदल रहा है।
बहुत कुछ बदल रहा है।
जो स्वयं को बदलते हुए तो देखना चाहते हैं।
लेकिन दूसरा बदल रहा है।
यह उन्हें बर्दाश्त नहीं है।
वह बहुत फख्र से कहते हैं कि वह फलां हैं।
क्योंकि उनके अंदर नफरत का जहर भरा हुआ है।
नफरत का अर्थ उन्हें जिस तरह से समझाया गया है।
वह समझते हैं कि नफरत बहुत अच्छी चीज है।
उन्हें यह नहीं समझाया गया कि तुम्हें।
यदि कोई इसी तरह नफरत करेगा ?
तो तुम कहां जाओगे क्योंकि तुम स्थाई नहीं हो।
तुम्हारा इतिहास किसी से छुपा नहीं है।
तुम भी उतने ही विदेशी हो।
जितना किसी को विदेशी कह रहे हो।
तुम भी तो कहीं से आए हो इस पर बहस होनी बाकी है।
यही डर तुम्हारे पीछे बहुत जोर से।
तुम्हें झकझोर रहा है क्योंकि तुम भीतर से डरे हुए हो।
हां संविधान से और उसकी धाराओं से।
तभी तो तुम उसे नहीं मान रहे हो।
हमारा संविधान हमारा धर्म है हमारी आस्था है।
हम उसी संविधान के सहारे आजाद हैं।
तुम गुलाम बनाने का प्रपंच रच रहे हो।
जी जो लोग आजाद हुए थे।
क्या उन्हें ज्ञान नहीं था।
तब संविधान नहीं था।
संविधान उन्होंने ही बनाया है।
और उसी संविधान के चलते।
आज तुम वहां हो जहां तुम्हें मनुस्मृति।
कभी नहीं आने देगा।
जी सब कुछ नहीं बदल रहा है।
बहुत कुछ बदल रहा है।
डॉ लाल रत्नाकर
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