बुधवार, 20 नवंबर 2019

यह कैसा संयोग है।

एक तरफ आतंकवाद है
और दूसरी तरफ मुर्दानगी छाई हुई है
यह कैसा संयोग है।
हाहाकार भी नहीं मच रहा है।
आए दिन हत्याओं की खबर बह रही है।
हत्याएं निरंतर बाढ़ की तरह बढ़ रही हैं।
शोर चोर की तरह कहीं भाग गया है।
नेताओं को अपनी जनता का भयभीत होना।
अब मर्मआहत नहीं करता।
कभी सुना है किसी नेता को जो जनता को।
हिम्मत दे रहा हो।
पता नहीं नेता भयभीत क्यों है।
डरा हुआ शांत ऐसे जैसे कुछ हो ही नहीं रहा है।
हत्याएं निरंतर बढ़ती जा रही हैं।
बस उनकी पहचान जाति के नाम पर होकर।
दफन हो जा रही है शोर नहीं हो रहा है
जेलें खाली हैं क्योंकि एक जेल में।
लालू जैसा माटी का लाल बंद है।
देश की किसी बड़ी जेल में।
करता इसीलिए लोग जेल जाने से डर रहे हैं।
नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए।
जिन्हें जेल में होना चाहिए।
वह लोगों को जेल का डर दिखा रहे हैं।
एक पैर रेल में एक पैर जेल में।
कभी समाजवादियों का नारा हुआ करता था।
अब तो शायद समाजवाद विकसित हो गया है।
और समाजवाद पूंजीबाद में तब्दील हो गया है।
पूंजीवाद में संघर्ष नहीं डर समाया होता है।
समाजवादी निडर होता है।
तो जो डरा हुआ है वह स्वत: मरा हुआ है!
एक तरफ आतंकवाद है।
और दूसरी तरफ मुर्दानगी छाई हुई है।


-डॉ लाल रत्नाकर

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