रविवार, 8 दिसंबर 2019

बेटियॉ बचाओ।

आज की विषम परिस्थितियों में कुछ लिखना कुछ कहना एक तरह से चुनौती है वर्तमान सत्ता के नारों के खिलाफ। दूसरी चुनौती है अंध भक्तों के मनमाफिक ना लिखा जाना ! ऐसे हालात में बेटियो की जो गति हो रही है उस पर कुछ लिखा जाए तो निश्चित तौर पर इनके लिए एक तरह का चैलेंज होगा और जिसे वे अपनी सत्ता से जोड़ कर देखेंगे और मानेंगे की उनकी सत्ता के मुहँ पर कालिख पोती जा रही है।

फिर बह सच से मुहं मोड़ना अंधभक्तों को उत्पात करने का मौक़ा देना है और डर  के माहौल को बढ़ाने में मौन सहयोग करना भी है। 



झूठ फरेब का दौर चल रहा।
सुहावने नारे गढ़ गढ़ करके ?
आओ हम चिंतन करें ?
बचे संविधान से कैसे समाज की मर्यादा।
सत्ता जब आमादा हो ।
आतंक और डर फैलाने को ?
जब नियति और नीति प्रबल हो
बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ!
इस नारे के बहाने !
जुमले हमले आदत जिनकी !
राष्ट्रवाद के राग अलापते ! 
राष्ट्रद्रोह का मोह प्रबल है !
जिनके रग रग में !
अबला औ सबला को लेकर !
संविधान की हत्या करके।
अराजकता का माहौल बनाकर ?
बेटियां बचाने और पढ़ाने ।
संविधान में लिखा हुआ है।
समता,समानता और बराबरी!
मनुस्मृति में भेदभाव है। 
स्त्री का अपमान वहां है !
द्विज के सिवा इंसान पशु है। 
मनुस्मृति का विधान यही है।  
सहमा सहमा इंसान यहां है।
बेटी कौन पढ़ाये इनसे कौन बचाए।
सत्ता के खुनी खूंखारों से।
उनके पाखंडी हथियारों से।
राष्ट्रधर्म का धर्म अधर्म का।
जो तांडव फैलाए।
व्यापारी है अत्याचारी हैं।
है कैसा कैसा दुराचार फैलाए।
अर्थव्यवस्था चौपट करके।
सरकारी उपक्रम बेचकर।
नौकरी कहाँ वो पाए !
भक्तिभाव में अंधा युवा !
अँधभक्त कहलाये। 
उठो युवाओं अब दौड़ाओ ?
उनको जो है बेरोजगारी फैलाए।
अंधभक्ति से निकलो पहले !
पहचानों बेटी बहनों को !
उनकी रक्षा तुमसे होगी !
नरभक्षी मनुवादी कुत्तों से !
जिन शास्त्रों में लिखा हुआ है !
शूद्र और नारी को अपमानित करना ?
आओ आग लगाओ ऐसे शास्त्र जलाओ !
आवश्यक समझो तो अब हथियार उठाओ ?
इज्जत सत्य को बेच-बाच कर। 
सत्ता है जो हथियाये ?
शासक लोकतंत्र से बनता !
वो जनता का सेवक है।
जो जनता को मार रहा है।
वह नरभक्षी औ शोषकों है।
शोषण का राज हटाओ !

डॉ .लाल रत्नाकर

कोई टिप्पणी नहीं: