डॉ लाल रत्नाकर
कौन पहुंचाना चाहता है इन्हें गांव।
वह तो पूजीपतियों को ला रहे थे विदेशों से।
कई महीनों से जहाजों में भरकर।
इन्हें कोरोना के नाम पर
शहर से भगाना था।
यही है फला मॉडल !
सुशासन वाले राज्य में।
इनकी आमद हो रही है।
स्वागत करिए।
खुशामद हो रही है।
ये खिचड़ी खाने वाले लोग नहीं हैं।
यह सरकार बनाते हैं।
जुमलों में फस कर !
वे जुमले बनाते हैं।
यह उनको समझ नहीं पाते।
इसीलिए तो दर दर की ठोकर खाते हैं।
कविता का मध्ययुगीन होना ?
उतना ही खतरनाक है जितना !
आज जुमलों की आवाज़ में !
रामायण के प्रसारण में !
फसे हुए समाज के !
उजड़े हुए रोजगार के !
भूख और हताशा के।
डर और अविश्वास के एहसास !
सरकारी असफलता के !
मंदिरो की विफलता के !
आस्था पर प्रहार।
इन्हे रोक नहीं पाता है।
पलायन से !

कौन पहुंचाना चाहता है इन्हें गांव।
वह तो पूजीपतियों को ला रहे थे विदेशों से।
कई महीनों से जहाजों में भरकर।
इन्हें कोरोना के नाम पर
शहर से भगाना था।
यही है फला मॉडल !
सुशासन वाले राज्य में।
इनकी आमद हो रही है।
स्वागत करिए।
खुशामद हो रही है।
ये खिचड़ी खाने वाले लोग नहीं हैं।
यह सरकार बनाते हैं।
जुमलों में फस कर !
वे जुमले बनाते हैं।
यह उनको समझ नहीं पाते।
इसीलिए तो दर दर की ठोकर खाते हैं।
कविता का मध्ययुगीन होना ?
उतना ही खतरनाक है जितना !
आज जुमलों की आवाज़ में !
रामायण के प्रसारण में !
फसे हुए समाज के !
उजड़े हुए रोजगार के !
भूख और हताशा के।
डर और अविश्वास के एहसास !
सरकारी असफलता के !
मंदिरो की विफलता के !
आस्था पर प्रहार।
इन्हे रोक नहीं पाता है।
पलायन से !

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