विश्राम की परवाह !
ना कर निकल चल राह अपनी !
कौन जाने कब कहां आ जाए
फरमान !
क्योकि बोलता है बहुत मीठा !
मगर फरमान उसका !
होता है बहुत खतरनाक !
विश्राम की परवाह !
ना कर निकल चल राह अपनी !
मुसाफिर राह अपनी !
विश्राम की परवाह ना कर !
पहचान लें इसकी नियति को !
जुमले और झूठे वचन को
राष्ट्र के संविधान का अपमान
और आमजन को क्या दिया !
जान लो अब जान लो !
अपने वतन को !
विश्राम की परवाह ना कर !
निकल चल राह अपनी !
डॉ लाल रत्नाकर
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