मुहँ छुपाने का वक़्त जो है !
लाखों लाख लोग संक्रमित हैं !
कोरोना महामारी से !
देश में फैली भुखमरी बेरोज़गारी से !
गरीब सडकों पे है लाचारी से !
कौन है जो मुँह सीए हुए है !
क्यों सच कहने में डरे हुए हैं !
देश कहीं चलता है झूठ और मक्कारी से !
सही सही क्यों नहीं कहते !
कि देश नहीं चलता व्यापारी से !
हमारे देश के इतिहास का कलंक होगा !
कैसे कैसे लोग सत्ता पे विराजमान है !
और सही को जीना है लाचारी में !
कवियों, कपियों और खबरियों कहाँ हो !
चैनलों पे जो बैठे हैं सच को चुराए !
आग लगी हुयी है और मुल्क जल रहा है।
खबर आ रही है जश्न चल रहा है।
सियासत के खेल में देश जल रहा है।
महीनों से बंद हैं सब तालों में !
ऐसा लगता है बाहर नहीं गए हैं सालों से।
सवाल घेरे हुए हैं उत्तर नहीं है कोई !
जब धर्म भी रोग हो गया !
और वह धार्मिक बना रहा है।
क्या तुम्हारा धर्म हमारे धर्म से सुरक्षित है !
तुम्हारा भेदभाव तो जगजाहिर है !
क्योंकि वह जाहिल बनाने में माहिर है !
मुहँ छुपाने का वक़्त जो है !
जश्न मनाने का वक़्त है क्या ?
- डॉ लाल रत्नाकर
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