गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

अदब से आदाब !


भक्तों की हिमाकत में खड़े थे !
हिन्दू बनने के चक्कर में पड़े थे !
लिन्चिंग में मज़ा थे जो ले रहे !
क्योंकि मुस्लिम थे मर रहे !
हिन्दुत्वा का जहर पीकर !
नशा था आगोश भी पाखण्ड का !
भारतीय संस्कृति का इतिहास !
साम्राजयवाद से है गढ़ा !
बहुजनों बोलो क्या है मनोदशा !
इतिहास अपने को है दोहरा रहा !
संघर्ष की पीड़ा तुम्हारी कम हुयी!
सामंतों की जो फौज अब है खड़ी!
वह अत्याचार कैसा कर रहा !
बीमार है हिन्दुत्वा का जहर है चढ़ा !
जातीयता से जो निर्मित है हुआ !
खून में जिसके जहर है मिला !
तभी तो जहरीला उसका स्वभाव है !
वह डस रहा है सत्ता की सुबिधा उसे !
क्योंकि यह दौर जहरीला हो चला !
सामंत सत्ता पर है काबिज !
सांस्कृतिक साम्राजयवाद है परवान पर !
विश्वगुरु बनने चला जहरीले स्वभाव से !
नफ़रत कर रहा है जब यहाँ इंसान से !
स्त्री दलित बहुजन और अल्पसंख्यक !
पर अत्याचार कैसा कर रहा !


डॉ लाल रत्नाकर 
   

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