न वो समझे हैं ! न समझेंगे !
क्योंकि वह मानसिक रोगी है।
जो अपने को मान बैठे हैं
बहुत समझदार
और अपनी समझदारी का
अपविश्ट फैलाते रहते हैं
समाज के उस हर व्यक्ति पर
जो उनके लिए
सरल भी है तरल भी है
पर वह चाहते हैं
उनके लिए गरल हो
और उन्हें चाकर समझता हो
यही तो सदियों का है
अभिशाप।
और अभिशप्त है पूरा समाज।
चाहे वह किसी भी विधा में हो
दुविधा ही पैदा करता है।
अपनी मानसिकता
और अपनी कुंठा
की वजह से।
मानसिक रोगी की तरह
अचेतन अवस्था में
पशुवत आचरण करता है
अब ऐसे इलाज क्या है
वह वर्तमान सरकार।
करने की योजना बना चुकी है।
और ऐसे लोगों का इलाज
समाज तो कर नहीं सकता।
इन्हें मनुस्मृति के विधान के तहत।
संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर।
पशु की श्रेणी में डाल कर
कहीं ना कहीं।
बांधकर।
भोकने के लिए भी नहीं छोड़ा जाएगा।
तभी तो मैंने लिखा है
कुछ मानसिक रूप से
बीमार लोग।
-डॉ लाल रत्नाकर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें