स्मारक
बनाने के लिए
स्मारकों को तोड़ रहा हूँ ।
सब कुछ मिटा दूँगा
क्योंकि उस पर
मेरा नाम नहीं लिखा है
न हमारे पुरखों का ही।
पहले मस्जिद तोड़ा
जो प्रतीकात्मक था
परन्तु छुपा हुआ एजेंडा
हमारा उद्देश्य तो संसद था
हमारे पूर्वजों की चापलूसी
के प्रतीक है यह सब।
मिटा दूँगा कितना भी हो
आलीशान !
नफ़रत के जंगल
जंगलों मे नफ़रत के
महल बनवा दूँगा ।
क़ानून वही होगा जो मैं कहूँगा
वही संविधान होगा।
संविधान संविधान ?
मनुस्मृति होगा।
समझ में आया हो तो
विचार करिए और आचार करिए
अन्यथा अपने घर में वही करिए
जो देश में हो रहा है
वह असंवैधानिक है
जो आपके मन में हो रहा है ।
वह क्या है ?
डा लाल रत्नाकर
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