अहंकार !
घर कर गया है
सद्विचार कहॉ से लाऊँ !
संस्थाओं में विष भर गया है।
जहर शहर गॉव गिराँव
और मानवता तक मे
आकंठ भर गया है।
उनसे जी
उन्हीं ज़हरीले स्वभाव वाले
शख़्स से सर्टिफ़िकेट
माँगते हो तो मॉगो !
मुझे नहीं चाहिए !
बॉटो और उसको लेकर
गली गली में भटको।
सामंतों की तरह
हमारा वह प्रतिनिधि
अकड़ रहा है जिसके बाप ने
जीवन में गरीबी भी देखी है
और गरीब भी रहा है।
और यह सामन्त हो गया है।
शायद
अहंकार !
घर कर गया है।
डॉ लाल रत्नाकर
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