सोमवार, 6 दिसंबर 2021

जो भरमा रहे हैं

 


जो भरमा रहे हैं
ना शर्मा रहे हैं
ना घबरा रहे हैं
जानते हैं ऐसा क्यों है
क्योंकि आप उन्हें
पहचानते नहीं है।
जी हां जानते नहीं हैं।
मीठे जहर से
वह बहला रहे हैं
पुसला रहे हैं।
हमें किस जहां में
वो ले जा रहे हैं।
भरोसे की दुनिया
कहां है हमारी।
बहुत सारे वे लोग
भी मर गए हैं
जो नहीं बक रहे थे।
सच बोल करके।
नहीं बच सकोगे।
यदि डर गए हो
इस समय के,
झूठों के झंझावात से
सच तो यही है।
इन झूठों के आगे।
डॉ लाल रत्नाकर

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