समय और समयचक्र।
असमय हो गया है ।
क्योंकि वक्त ही चिन्हित करता है।
वक़्त वक़्त का बुरा भी अच्छा भी ...।
'''''''''''विश्वास नहीं होता।
एहसास नहीं होता !
तुम्हारे दोहरे वचन का।
विश्वास ही नहीं होता
जीवनदायिनी जीवनधारा का।
कुछ तो हो गया होता...
राष्ट्र के चक्र का या कुचक्र का।
क्यो झेल रहा है यह संकट/त्रासद।
आम आदमी इस धरा का।
इस आपदा का पूर्वाभास तो रहा ही था।
परंतु वक्त ने ही अनासक्त कर दिया तुमको।
तुमने ही जड़ चेतन तन मन धन सब तो !
न्योछावर कर दिया उसने भ्रम से भर दिया।
आखिर हम सबने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा।
क्योंकि हम जान गए थे तुम्हारा।
परोसा व फैलाया हुआ अखंड पाखंड।
सदियों सदियों के इतिहास और भ्रम से !
तुम्हारी आध्यात्मिकता नैतिकता और चरित्र को।
जो दुनिया का सबसे निराला हथियार है।
जिसे कमजोर करने के लिए
संविधान में व्यवस्था पुरजोर है।
धर्म की जगह संविधान सही है।
यही तो हम कह रहे थे।
और इसी पर देश आगे बढ़ रहा था।
तुमने राष्ट्रवाद राष्ट्रवाद कहकर किस राष्ट्र को बर्बाद कर दिया।
पता तो तुम्हें भी है और हमें भी है।
पाखंडवाद का चलन कर दिया।
केदारनाथ और बनारस को केंद्र बना दिया।
दिल्ली में सब कुछ तहस-नहस कर दिया।
यही है समय चक्र।
करते जाओ कुचक्र।
समय का पहिया रोकेगा।
तुम्हारा फैलाया हुआ षड्यंत्र।
- डॉ लाल रत्नाकर
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