हम भी इंसान हैं
हमें हैवान क्यों बना रहे हो,
जानता हूं तुम्हारे प्रतीकों को
उन पर खुल कर बोलना
शायद तुम्हें नागवार लगे
हम तुम्हारी जगह ले सकते हैं
तुम इंसानियत भूल गए हो।
हमारे अंदर इंसान जिंदा है।
कीचड़ में जन्म लेकर
मंदिर में विराजमान होने की
सजा तो भुगतनी होगी
क्योंकि कीचड़ और मंदिर
दोनों प्रतीक है।
एक गंदगी का और दूसरा
पवित्रता का।
मगर पवित्रता का
यह मतलब नहीं होता।
कि तुम्हारा मंदिर पवित्र है
और हमारा अपवित्र।
झगड़े खड़े करने का मकसद
हमें भी पता है और तुम्हें भी।
सत्ता मद में तुम।
पागलों सा आचरण कर रहे हो।
हमने ऐसा नहीं किया था।
हमने समता स्वतंत्रता और
भाई चारे के साथ।
तुम्हें फैलने की आजादी दी थी।
क्योंकि हम जानते थे
कि तुम भी इंसान हो।
- डॉ लाल रत्नाकर
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