मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

नफरत का जब से, तुम बीज बो रहे थे।

 


तुम्हारी नफरत तुम्हें मुबारक।
मेरी मोहब्बत को मत सिला दो।
हमने देखा है तुमको तब से।
नफरत के तुम बीज बो रहे थे।
तुम्हारी फितरत मेरी मोहब्बत।
यह दौर जिस चासनी में पगा है।
कितना सगा है, कितना दगा है।
समझ न पाएंगे ओ मेरे बंधु।
जिनके हक को तुमने ठगा है।
तेरी पोटली में है जहर की पुड़िया।
जिसको तुम नमक कह रहे हो।
दुहाई देकर लूटते हो उनको।
अज्ञान और अहंकार का समंदर।
बुलडोजर से हो लादकर लाए।
नमक की जिस कसम से ?
भरमारकर भरम हो फैलाए।
धरम का मरम हो कहां लगाए।
प्रतीकों के पंडित हो माहिर।
जिनके माथे पर हो तुम लगाए।
संविधान को धता बताकर।
नज़रें गड़ाए हो कब से तुम्ही तो,
बहुत दूर से घात मेरी संपत्ति को।
बहुरूपिया बनके ठग रहे हो।
अपने को ही महंत कह रहे हो।
जर्जर हुआ है यहां सारा सिस्टम।
जनता की कंगाली का माजरा है।
मोहब्बतें तेरी कितनी दगा है।
सबको पता है कौन सगा है।
तुम्हारी नफरत तुम्हें मुबारक।
मेरी मोहब्बत को मत सिला दो।
हमने देखा है तुमको तब से।
नफरत का जब से, 
तुम बीज बो रहे थे।

-डॉ लाल रत्नाकर







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