मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

तुम्हारी नफरत और मुहब्बत

 
तुम्हारी नफरत
और मुहब्बत 
दिखाई दे या
ना दिखाई दे।
इसका हमको
गिला नहीं है
सिला नहीं है
नहीं है शिकवा
ना ही शिकायत
जमीर की कीमत
जमीन से 
मत वसूलो
पहाड़ जंगल
कहां बचे हैं
कैसे बचेंगे।
यही है चिंता
धरा कि मेरे
धारा बदलने
जो जो चले थे
सभी ने उसको
उजाड़ा कैसे
दुश्मन जिसे
कर सका 
न अब तक
नियति तुम्हारी
वही सब है।

-रत्नाकर



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