नफरतों के हर शहर में
आमतौर पर हर आदमी!
रावण बनता जा रहा है।
सत्ता बेफिकर हो!
अत्याचार का कहर हो!
सदासयता ही ना हो,
केवल वोट की कीमत हो!
जन जीवन असुरक्षित हो।
जन जन के मन में भय हो
अपराधियों को सत्ता का,
संरक्षण हो।
तभी तो आज का हर युवा
पढ़ने लिखने की बजाए!
अपराधी बनने का,
रास्ता चुनता जा रहा है!
वादे मनभावन हों,
अपराध ही पावन हो।
सत्ता के शीर्ष पर!
नए भारत की यही पहचान
बनाई जा रही है।
सारी संवैधानिक व्यवस्था
मिटाई जा रही है!
आने वाला भारत कैसा होगा।
इसके नमूने पूरे देश में
अलग-अलग तरह से,
दिखाई देने लगे हैं।
मस्जिदों पर भगवा
खाने पर पाबंदी।
सड़कों पर हुड़दंग।
और सुरक्षा का प्रबंध।
सब है चाक-चौबंद।
रावण बनता नजर आ रहा है,
आधुनिक रावण कहां जा रहा है।
जहां जा रहा है वहीं पर।
राम को आमंत्रित कर रहा है।
राम निरंतर भागता जा रहा है।
राम का घर बनवा रहा है।
अपने राजमहल के साथ-साथ।
दोनों के मध्य क्या संबंध है।
यह रावण उजागर नहीं करता।
लेकिन वह जानता है।
अपना सच और जनता का सच।
यह रावण कहां जा रहा है।
- डॉ लाल रत्नाकर
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