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उनके नाम !
जो भी रात दिन
नफरत परोस रहे हैं
धर्म की, जाति की!
हमने भी देखा है,
उन्हें औरों को,
जातिवादी कहते हुए !
जातिवादी कहते हुए।
जातियों से नफरत करते हुए।
यही तो है वह लोग।
जो हमें कभी भी,
अच्छे नहीं लगे लगते भी क्यों ?
क्योंकि उनके भीतर की
मरी हुई आत्मा,
दिख रही होती,
जब वह अहंकार में
तप रही होती!
ऐसे ही हैं वह लोग!
जो राष्ट्रवाद की बात करते हैं।
और राष्ट्र को बर्बाद करते हैं।
अब उनका जातिवाद!
उनको जातिवाद नहीं लगता।
साम्राज्यवाद नहीं लगता।
लोकतंत्र बर्बाद हो रहा है।
इनको खुराफात नहीं लगता!
जो भी रात दिन
नफरत परोस रहे हैं
धर्म की, जाति की!
- डॉ लाल रत्नाकर
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नोट:
(यह बात कहने के लिए विशेष रुप से मुझे अपने पूर्व महाविद्यालय के सेवानिवृत्त साथियों की प्रवृत्ति देखकर प्रेरणा जगी मुझे लगा कि अगर लिखा नहीं गया तो वह भी छूट जाएगा। और वह अपनी मनमानी कारस्तानी करते रहेंगे और महान बनते रहेंगे।)
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