शनिवार, 14 मई 2022

फिर अधरम क्या है?



विचारों में जिनके 
जहर की खुमारी,
इधर हों उधर हों
कहीं हो ये जहरीले
चमन के अमन को
जलाते ही रहेंगे,
खुमारी जो लगती है
उनको सितारे।
दुश्मन अमन के
दुश्मन चमन के
शातिर बहुत हैं
खातिर हमारे !
हम तो बैठे हैं
शांति के ठिकानों में
देश के दीवानों या 
मुसीबत के मारो के
चौकस सुरक्षा में
संविधान के सिरहाने।
उसी को कुतरते हुए
घृणा से मन को भरते हुए
घाव करते हुए।
कौन जानता है
यही तो भरम है,
जिसको कहते धर्म है।
फिर अधरम क्या है?
पूछो नहीं तो !
सुखी यह बहुत हैं!
हम सब से सारे दुखी बहुत हैं।
विचारे विचारे विचारे हमारे।
समस्या यही है, समस्या सही है।
ये सारे के सारे 
विमारी के मारे।

- डॉ लाल रत्नाकर
 

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