ज्ञान पर सवारी करेगी।
एक नन्हा सा पाखंडी
उनकी आंखों में धूल झोंकेगा।
जिसके इशारों पर झूम उठेगी,
बहुजन महिलाएं यही परम्परा है।
प्रकृति के उपादानों की हत्या
कर रहे हैं आधुनिकता के तत्व,
खुशियों के मध्य थोथा प्रदर्शन
गांव के झुरमुट से महानगरों तक
वही स्वर प्रस्फुटित हो रहा है।
विकास की संस्कृति विनाश के
रथ पर सवार दिखा रही है।
सारे समाज सुधारकों को ठेंगा।
पाखंडियों को चढ़ा रही है प्रसाद
बहुजन बदलाव के चकाचौंध
जिस मार्ग पर जा रहा है।
यह धरती पर नजर आ रहा है।
आईए आपको दिखाते हैं।
और गरम गांव की सैर कराते हैं।
रेत में खोजते हैं बचपन की,
सुख और शांति।
एक नन्हा सा पाखंडी
उनकी आंखों में धूल झोंकेगा।
जिसके इशारों पर झूम उठेगी,
बहुजन महिलाएं यही परम्परा है।
प्रकृति के उपादानों की हत्या
कर रहे हैं आधुनिकता के तत्व,
खुशियों के मध्य थोथा प्रदर्शन
गांव के झुरमुट से महानगरों तक
वही स्वर प्रस्फुटित हो रहा है।
विकास की संस्कृति विनाश के
रथ पर सवार दिखा रही है।
सारे समाज सुधारकों को ठेंगा।
पाखंडियों को चढ़ा रही है प्रसाद
बहुजन बदलाव के चकाचौंध
जिस मार्ग पर जा रहा है।
यह धरती पर नजर आ रहा है।
आईए आपको दिखाते हैं।
और गरम गांव की सैर कराते हैं।
रेत में खोजते हैं बचपन की,
सुख और शांति।
डॉ. लाल रत्नाकर
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