शनिवार, 11 जून 2022

जिन्हें नफरत के रक्त से सींचा।



जिन्हें नफरत के रक्त से सींचा।
उन्हें हक था हमको छोड़ जाते।
मगर नहीं छोड़ा समझकर यह,
कि हम एक हैं मेरा कर्तव्य है।
उनके दुख सुख में खड़े रहना।
कभी सोचा वो कितने सगे हैं।
जिन्होंने जातीय दंश से सींचा।
वर्गों में विभाजन का उद्देश्य था,
जातीयता की जरूरत क्या थी,
नफरती मंजर तो भीतर भरा है।
घर के जर्रे ज़र्रे में जहर भरा है।
बेमतलब देवालय देवता कहां है,
नहीं समझोगे नफरत के सिम्बल
तुम्हारे अधिकारों पर जो मढ़ा है,
परंपराएं प्रतीक और सम्मान से
खांचों खांचों में बांट कर रखा है।
कौन लिखेगा इसके खिलाफ,
भीतर निकम्मा चौकीदार खड़ा है
कभी सोचा कि आदर्श क्या है।
समता समानता स्वतंत्रता और ?
न्याय, सुरक्षा व बंधुत्व क्या है।
तुम नफरती हो कहते धार्मिक हो
बिगाड़ा है प्रकृति के मानकों को,
निकम्मी कौम बैठी कोठारों पर,
तुम्हारे अंदर का दुश्मन अंधा है।
नहीं दिखता उसे असत्य क्या है।

- डॉ लाल रत्नाकर


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