गुरुवार, 23 जून 2022

शातिर से शातिर भी हार जाते हैं।

 


भूकंप या भूचाल
कहीं भी और कभी भी आ सकता है,
राजनीति में समाज में
और धर्म के रीति रिवाज में
जो कल तक मालवाहक थे
आज वह मालिक बन बैठे
यह पहली बार नहीं हुआ है
अनेक बार होता आया है।
सावधानी हटी दुर्घटना घटी,
हमें तो ऐसे विश्वासघातियों से
भले नफरत हो।
लेकिन यह व्यापार
और सत्ता के लिए जरूरी है
इनका बिकना और डरना
दोनों समझ में आता है।
अगर इससे मुकरते हैं
जेल का खेल आसान होता है।
राजनीति में इतने डरपोक!
पहली बार नहीं देखा है।
अक्सर दिखाई देते रहते हैं।
दुनिया बदलने चले होते हैं।
और अंत कैद में होता है।
यही राजनीति है इसीलिए इसमें।
बहुत शातिर लोग माहिर होते हैं।
शातिर से शातिर भी हार जाते हैं।
नाम नहीं लूंगा हालांकि लोग
समझ जाते हैं।
 
- डॉ लाल रत्नाकर

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