असिस्ट हो जाइए ना
कौन कहता है यह शिस्ट हैं
उन्हें अशिष्ट कहने की जरूरत
क्यों आ जाती है?
शिष्टाचार में अशिष्ट होना।
अशिष्ट होकर शिष्टाचार करना।
बहुत बहुत फर्क होता है।
आदमी के आदमी बने रहने में।
और फर्क होता है आदमी का,
जानवर के रूप में बदल जाने का
मगर उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
जो आदमी के रूप में जानवर हैं।
फर्क उन जानवरों पर भी नहीं पड़ता।
जो उन आदमियों की संगत में रहते हैं।
फर्क पड़ता है तो मानवता के
उसूलों से इतर जाने में।
या उतर जाने में।
- डॉ लाल रत्नाकर
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