मध्य रात्रि के बाद 1: 41 पर
उठना और बाथरूम जा कर,
लौटना और निहारना चांद को
कहां गई शीतलता, सदियों की
क्योंकि अब यह चांद आग का
गोला प्रतीत हो रहा है।
सचमुच रितु और प्रकृति का
बेमिसाल रूप नजर आ रहा है
जहां मान्यताएं खत्म हो रही है
नया आचार विचार बन रहा है।
आखिर यह डरावना रूप
हमको ही क्यों दिख रहा है।
सचमुच नजर आ रहा है
विनाश का भावी मंजर,
हर व्यक्ति के साथ खड़ा है
खतरनाक और खूंखार सजर
उसका रूप भोला भाला है।
भीतर जहर का गोला है।
उठना और बाथरूम जा कर,
लौटना और निहारना चांद को
कहां गई शीतलता, सदियों की
क्योंकि अब यह चांद आग का
गोला प्रतीत हो रहा है।
सचमुच रितु और प्रकृति का
बेमिसाल रूप नजर आ रहा है
जहां मान्यताएं खत्म हो रही है
नया आचार विचार बन रहा है।
आखिर यह डरावना रूप
हमको ही क्यों दिख रहा है।
सचमुच नजर आ रहा है
विनाश का भावी मंजर,
हर व्यक्ति के साथ खड़ा है
खतरनाक और खूंखार सजर
उसका रूप भोला भाला है।
भीतर जहर का गोला है।
- डॉ लाल रत्नाकर
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सजर/वृक्ष
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