मेरे मुखौटे पर मत जाओ
इसको संवारने के लिए
मेरे पास फुर्सत नहीं है
रंग बदरंग, अंग बदरंग।
मन बदरंग, नियति बदरंग।
सब छुप जाता है जब?
चेहरा काला हो जाता है।
सफेद चेहरे में,
बहुत कुछ नजर आता है।
इसीलिए हमने चेहरे को
काला कर लिया है।
क्योंकि मेरे परिवेश को
मेरे माहौल को
मेरे समाज को
लहूलुहान करने का
दौर चल रहा है।
हमारे दुश्मन बनाने का
कई तरह का खेल चल रहा है।
लुटेरे तो तोहमत लगा रहे हैं,
देश के वफादार, मूलत: गद्दार
हमें बेवफा बता रहे हैं।
हम तो भ्रमण पर जा रहे हैं।
घूमकर आते हैं तो बताते हैं
कि मेरा चेहरा ?
क्यों दागदार नहीं है।
कभी तो अपना भी
स्वागत करो !
डॉ लाल रत्नाकर
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